हम फिल्में क्यों देखते हैं ?
मैंने बाहुबली वन नहीं देखी थी और अगर कुछ चमत्कारिक नहीं घटा,तो स्वाभाविक है कि बाहुबली 2 भी नहीं देखूंगा। बात फिल्म समीक्षा की नहीं, स्वभाव की है। फिल्म देखना मुझे बहुत रास नहीं आता। ऐसा भी नहीं है कि कोई ऐलर्जी हो फिल्मों से-कभी टीवी देखते हुए रिमोट और आँखें सहज ही किसी खास फिल्म पर आ कर रुक जाएं तो देख भी लेता हूँ। पर खुद से पहल नहीं करता। बस! इतना ही संबंध है मेरा फिल्मों से।और फिल्म न देखने के लिए कोई तर्क गढने में भी मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रहती, जैसे दिवाली पर पटाखे न फोङने पर ईकोफ्रेंडली का राग या चीनी सामान न खरीदने के पीछे का राष्ट्रवाद या शाहरुख या आमिर ने कोई तथाकथित विवादित बयान दे दिया, तो इस स्टार की फिल्म बॉयकॉट कर दी जाए,ये सब अस्थायी जज़्बात हो सकते हैं, दीर्घकालिक और तार्किक नहीं। ये प्रश्न भी मुझे विचलित नहीं करता कि जिस देश को स्नैपचैट का सीईओ गरीब कहता है, वही देश अमूमन हर माह एक न एक फिल्म को सौ या दो सौ या तीन सौ करोङ क्लब में शामिल कैसे कर रहा है। यह प्रश्न भी विचलित नहीं करता कि जब किसी फिल्म के पीछे ऐसी दीवानगी हो तो यह मुझे आकर्षित क्यों नहीं कर रही? वह क...