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बायोपिक : सृजन के अभाव की उपज

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2016 अस्त की ओर है और 2017 उदय की। ये बङा वाजिब वक्त है Introspection का और चिंतन-मनन का जो कुछ अच्छा-बुरा 2016 में घटा।भीतर झांकने से पहले बाहर के विषयों पर चिंतन किया जाए।सो बात 2016 की बॉलीवुड फिल्मों की।हर साल की तरह इस साल भी सैंकड़ों फिल्में आईं।अब पसंद-नापसंद तो सभी की निजी राय होती है,किसी के "टेस्ट" को कुछ अपील करता है तो किसी को कुछ,फिर मैं कोई फिल्म ऐक्सपर्ट भी नहीं कि रिव्यू जैसा कुछ लिख सकूं।इसलिए बस एक बात जो प्रकट रूप में महसूस होती है -मेरी राय में बॉलीवुड में यह वर्ष "बायोपिक" का रहा।इस साल कई बङे नामचीन हस्तियों-घटनाओं-किरदारों आदि पर फिल्में बनीं।और अधिकतर कामयाब भी वही फिल्में रहीं।उदाहरण के लिए एम एस धोनी,नीरजा,सरबजीत ,रुस्तम,एयरलिफ्ट आदि-इत्यादि।वैसे ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की फिल्में इसी साल आईं हों इससे पहले भी सैकङों बायोपिक फिल्में आईं और अधिकतर कामयाब भी रहीं।पर इस साल तो जैसे ऐसी फिल्मों की बाढ ही आ गई।वैसे इन बायोपिक और सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्मों में कोई बुराई नहीं,इसलिए इस आलेख को किसी भी प्रकार से आलोचनात्मक न समझा जाए। परंतु ...