लघुकथा : "रिश्ते"

'चालीस साल हो गए और तुमने इस खत को अब तक संभाले रखा है मनोहर?' 'हाँ कैसे ना रखूँ? अपनी पैंतीस साल की पोस्टमास्टर की नौकरी में हर एक खुशी और गम का पैगाम गंतव्य तक पहुँचाया है।यही तो एक अवसर था जब मैंने अपने काम को पूरा नहीं किया।और यही अधूरा काम मुझे मेरी पूर्णता का ऐहसास कराता हे।जरा सोचो उस दिन तुम्हारे पिता का लिखा ये खत तुम तक पहुँचा दिया होता तो जा चुकी होती तुम//किसी और से शादी//फिर कहाँ होता मेरा तुम्हारा ये साथ।और साथ भी कितना सुंदर,कितना हसीन।मिताली के बिना मनोहर अधूरा और मनोहर के बिना मिताली.....दोनों एक दूजे के पूरक।आजकल के ज़माने में ऐसे रिश्ते कहाँ संभव हैं मिताली?' 'व्हॉट्सैप वाले ज़माने में खत छुपा कर खबर छिपा लेना भी कहाँ संभव है मनोहर?' और दोनों खिलखिला कर हँस दिए..........