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Showing posts from April, 2017

लघुकथा : "रिश्ते"

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'चालीस साल हो गए और तुमने इस खत को अब तक संभाले रखा है  मनोहर?' 'हाँ कैसे ना रखूँ? अपनी पैंतीस साल की पोस्टमास्टर की नौकरी में हर एक खुशी और गम का पैगाम गंतव्य तक पहुँचाया है।यही तो एक अवसर था जब मैंने अपने काम को पूरा नहीं किया।और यही अधूरा काम मुझे मेरी पूर्णता का ऐहसास कराता हे।जरा सोचो उस दिन तुम्हारे पिता का लिखा ये खत तुम तक पहुँचा दिया होता तो जा चुकी होती तुम//किसी और से शादी//फिर कहाँ होता मेरा तुम्हारा ये साथ।और साथ भी कितना सुंदर,कितना हसीन।मिताली के बिना मनोहर अधूरा और मनोहर के बिना मिताली.....दोनों एक दूजे के पूरक।आजकल के ज़माने में ऐसे रिश्ते कहाँ संभव हैं मिताली?' 'व्हॉट्सैप वाले ज़माने में खत छुपा कर खबर छिपा लेना भी कहाँ संभव है मनोहर?' और दोनों खिलखिला कर हँस दिए..........

ताजमहल !!!!!!

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आज के समाज में  प्रेम करने में बङी बंदिश है।बंदिश तो हमेशा ही थी,पर आज स्टेट स्पांसर्ड बदनामी है।सरकारें रोमियो को बदनाम कर रही हैं,तो बुद्धिजीवी कृष्ण को।तो भला प्रेम कौन करे? यदि रोमियो को पता होता कि सालों बाद उसके नाम से शोहदों का ज़िक्र आएगा तो कभी मुहब्ब्त करने की गुस्ताखी न करता।यदि  शाहजहाँ को पता होता कि उसके मरने के तीन सौ साल बाद ताजमहल को शिव मंदिर या किसी राजा का महल आदि बताया जाएगा तो प्यार की निशानी के रूप में इतनी बङी इमारत बनाने के फेर में न पङता।वैसे ताजमहल बनाने में आज के आशिक की कोई दिलचस्पी नहीं(और हैसियत भी नहीं)और ऐसा भी नहीं कि जहाँ ताज नहीं बने,वहाँ प्यार नहीं था।ताजमहल मुगल कालीन कलाकारी का एक अद्भुत् नमूना है,पर प्यार की एकमात्र निशानी नहीं। आज का प्रेमी ताजमहल क्यों नहीं बना रहा?इसके कई कारण हो सकते हैं।एक तो यह कि अब बादशाह रहे नहीं और उनकी बची-कुची बादशाहत भी इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स बंद कर के खत्म कर दी।धीरे-धीरे समाजवाद मजबूत होता चला गया और बादशाह होना एक महंगा सौदा हो गया ।इससे अच्छा है गरीब होना और सब्सिडी का हकदार बनना।पर क्यों न सरकार ...

"शाजि़या" (लघुकथा)

'अभी तक वही रिंगटोन,इनफैक्ट इफ़ आई ऐम नॉट रॉंग फोन भी वो ही है ना? यू आर इम्पौसिबल किशन।सात साल में बिलकुल नहीं बदले' शाज़िया ही बोले जा रही है,किशन बस हाँ या ना में सर हिला देता है । सात साल पहले भी शाज़िया ही ज़्यादा बोलती थी, ब्राह्मण का ये छोरा तो अक्सर खामोश ही रहता था। बातों का सिलसिला आगे बढने लगता है। सात साल बाद जो मिल रहे हैं दोनों। 'तो मैडम कैसे हैं आपके शौहर?' 'अच्छे हैं,ही इज़ वैरी केयरिंग।' एंड किड्स? 'आई हैव ए सन ।शाहिद नाम है।पाँच साल का हो गया है।' 'तुम बताओ तुम्हारी लाईफ कैसी चल रही है? How is your wife?' 'पता है शालिनी को भी म्यूज़िक का शौक है,और कविताएं भी लिखती है और लप्रेक भी।' 'मतलब तुम्हारी ही तरह हैं? 'ऐक्चुअली तुम्हारी तरह भी है,मुझे बोलने का मौका ही नहीं देती।' 'और तुम्हारी डॉटर? 'Yeah she is also very cute. Infact she is also like you, दो साल की है।' 'क्या नाम है?' थोङी देर खामोश रहा किशन। यह खामोशी मानों सात सालों के मौन की कहानी कह रही थ...