SARAHAH के बहाने ......(व्यंग्य)

कल "Sarahah" को  uninstall कर ही दिया।झूठ काहे बोलें सात दिन में सिर्फ दो मैसेज आए। खुद को सांत्वना देने को सोचता हूँ शायद मेरे दोस्त इतने पारदर्शी हैं कि उन्हें मुझ से कुछ कहने को ऐसे माध्यमों की कोई आवश्यकता नहीं महसूस होती हो।
पर अपने अनुभव से इतर देखूँ तो साराहा खूब चल रहा है।अपवादों को छोड़  दें तो लोग इस पर आने वाली हर अच्छी बुरी प्रतिक्रिया से संतुष्ट दिख रहे हैं।मनवांछित के लिए स्वीकार्यता और अनवांछित के लिए असहिष्णुता जो अन्य जगहों पर दिखती है वह यहां  नहीं  दिखाई  देती।
इसकी लोकप्रियता  का सबसे बडा कारण है इसमें पहचानों की गोपनीयता।ये मनोविज्ञान की बात है कि हमें  वही वस्तुएं  अधिक लालायित करती हैं जो दिखाई नहीं देती।सुना है अमेरिका में एक स्टोर ने एक बार ऐसी हेयरपिन बेचनी शुरू की जो दिखती नहीं  थी।देखते ही देखते  ये खूब चलन में आ गईं।खूब  बिकने  लगीं।लोगों को यह अपील कर गईं।हर कोई  इसे खरीदने  लगा,सेल खूब  बढ गई ।बाद में पता चला कि असल में ऐसी कोई हेयरपिन थी ही नहीं डिबिया तो खाली थी।
यह सही है कि जो दिखता है वो बिकता है पर उससे बङा सच है कि जो नहीं दिखता है उसके अंदर बिकने का potential ज्यादा होता है।भगवान  दिखता नहीं  है इसीलिए सबसे अधिक कामर्शियल पोटेंशियल उसी में  है।धर्म  के नाम पर चलने वाली सभी दुकानें इसी कामर्शियल पोटेंशियल को साधती हैं।भारत  जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में तो यह पोटेंशियल और अहम हो जाता है क्योंकि यहाँ राज्य  का कोई धर्म नहीं होता तो हर धर्म के ठेकेदारों  को इस कामर्शियलाइजेशन की खुली छूट होती है। एक  धर्म ही तो ऐसा सेक्टर  है हमारी आर्थिकी का जो १९९१ के आर्थिक सुधारों से बहुत पहले भी privatised ही था।
तो कुल मिलाकर  जो नहीं  दिखता  उसकी  डिमांड ज्यादा  है।
और भी कई मनोवैज्ञानिक पहलुओं की ओर इंगित करती है साराहा की दीवानगी।गुमनाम होकर  हम अधिक  सच्चे  हो जाते हैं क्योंकि तब अपनी एक झूठी छवि से परदा उठने का कोई  भय नहीं  होता ।अजब बात ये भी है कि असल के मुकाबले  स्वीकार्यता भी आज नकल  की ज्यादा है।मैं "मैं " होकर सच नहीं  बोल सकता  और आप "आप " होकर  सुन नहीं सकते .....हम दोनों को अपनी  पहचान  ध्वस्त  करनी होगी तब जाकर  सत्य  उदय होगा-प्रकट भी और स्वीकार्य  भी।
आप किसी को आई लव यू कहें उत्तर चाहे जो  भी हो पर इतना सहर्ष,सहज और त्वरित तो नहीं  होगा  जैसा साराहा के माध्यम  से इजहार करने वालों को मिल रहा है- अपने  गुमनाम आशिक के इजहार को चिर परिचित अंदाज में फेसबुक पर साझा करते  हुए लङकियाँ लिख रही हैं Aww I love u too.😘😘......
ऐसी सहज  स्वीकृति  प्रेम की गुमनाम को ही मिल सकती  है।ऐसा इसलिए क्योंकि  उसमें जिम्मेदारी नहीं  बस प्यार है।असल-नकल का परीक्षण  नहीं ,बस इजहार है।
मैंने पिछली  पोस्ट  में भी लिखा  था कि प्रेम  का  इजहार करना अगर  कला है तो इसके  पिकासो विलुप्त  होते  जा रहे हैं।
आभासी मंच पर मिथ्या  रूप  में ही सही पर साराहा ने कम से कम कुछ  पिकासो  तो जीवंत  किए  या यूँ कहें कि उनके  विलुप्त  होने  का  ऐहसास करवाया ,इसके  लिए  तो ये बधाई का  पात्र है ही।
हामिद अंसारी भी तथाकथित असुरक्षा पर अपनी  तथाकथित  चिंता  साराहा के माध्यम  से व्यक्त करते  तो और सम्मान  के साथ  जाते ।🙏

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