सुई या तलवार ?????
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि जहां काम आवै सुई, कहा करै तलवारि। रहीम का यह दोहा तो हमने सुना ही है,गौर करें बस सुई और तलवार पर। प्रत्येक वस्तु का अपना मूल्य है।जो काम सुईं से हो सकता है,वह तलवार से संभव नहीं।पर अफसोस कि आज हम एक ऐसे दौर में हैं जब सुईं की कला सीखने का नहीं,तलवार की ताकत तोलने का प्रचलन है।जब से सोशल नेटवर्किंग साइट्स आई हैं,हमने देखा हैकि अब चीज़ें लोकप्रिय नहीं होतीं,प्रसिद्ध नहीं होती,बस "वाइरल" होती हैं।और ये वाइरल ही बङा घातक है,विष के प्याले के समान है।फेसबुक-व्हॉट्स एप आदि के माध्यम से जो एक सबसे बङा विषकारक वाइरल फैल रहा है इन दिनों-वह है राष्ट्रवाद।राष्ट्रवाद हो तो अच्छा है,पर यह है फर्जी राश्ट्रवाद (इस शब्द के जनक इस दौर में डॉ कुमार विश्वास हैं जहॉँ तक मेरी जानकारी है)। बङा व्यापक और भयावह है यह फर्जी राष्ट्रवाद।और इस को खाद-पानी से सींचता है सोशल मीडिया का अभिशाप।आए दिन हमारा(मेरा तो नहीं) खून उबाल देने वाले पोस्ट और मैसेजेज़ देखने को मिलते हैं।जैसे एक तस्वीर में तिरंगे को जलाता एक लङका दिख रहा है,और उस पर "माता-बहनों के सम्मान सूचक...