Posts

Showing posts from April, 2021

"भीड़" से इतर ...

Image
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए बहुत कड़े शब्दों में चुनाव आयोग की आलोचना की है। आलोचना भी हलका शब्द है। हत्यारा करार दिया है चुनाव आयोग के अधिकारियों को। वैसे बात सही भी है। जब Accountability फिक्स करनी ही हो (और करनी ही चाहिए) तो सबसे पहले बात चुनावी रैलियों की ही होनी चाहिए। क्योंकि "दो गज की दूरी" के नियम का सबसे अधिक बेशर्मी के साथ उल्लंघन तो यहीं हो रहा था। बल्कि अब उल्लंघन हलका शब्द मालूम पड़ता है। धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं। तो मद्रास हाईकोर्ट की बात तो एकदम ठीक है पर ये टिप्पणी अधूरी है। क्योंकि पहली लहर और दूसरी लहर के बीच के समय को अब याद कीजिए तो पाएंगे कि चुनावी रैलियों से इतर भी देश में कई जगह भीड़ थी। कुंभ में दूरी के नियम की अनदेखी हुई और किसान आंदोलन में भी। और इन सबसे पहले सुशांत को इंसाफ दिलाने के नाम पर जो मीडिया ट्रायल इस देश ने देखा वह सबसे त्रासदीपूर्ण था। कोरोना के प्रसार के बीच भी मीडिया जिस लापरवाही के साथ भीड़ पैदा कर रहा था, वह इस TRP वाली रिपोर्टिंग का सबसे घटिया चेहरा था। याद कीजिए रिया चक्रवर्ती का पीछा करती मीडिया की गाड़ियों का...

Bertrand Russell's Ten Commandments of Critical Thinking

As a part of our series of foundational posts on critical thinking, today I am sharing with you the very popular ten commandments of critical thinking given by Bertrand Russell in an article published in a 1951 edition of the New York Times Magazine :- 1) Do not feel absolutely certain of anything. 2) Do not think it worthwhile to proceed by concealing evidence, for the evidence is sure to come to light. 3) Never try to discourage thinking, for you are sure to succeed. 4) When you meet with opposition, even if it should be from your husband or your children, endeavour to overcome it by argument and not by authority, for a victory dependent upon authority is unreal and illusory. 5) Have no respect for the authority of others, for there are always contrary authorities to be found. 6) Do not use power to suppress opinions you think pernicious, for if you do the opinions will suppress you. 7) Do not fear to be eccentric in opinion, for every opinion now accepted was once eccentric. 8) Find...

नए सत्र का शुभ आरम्भ

सादर प्रणाम। एक बहुत लंबे अंतराल के बाद इस ब्लाग पर  फिर से आप सबका स्वागत है। आशा है इस नए सत्र में हम और सार्थक चिंतन कर सकें। ऐसा चिंतन जो आज के समय में चारों ओर व्याप्त ध्रुवीकरण से पूर्णतः मुक्त हो और किसी मत या विचार को अछूत न समझता हो; जो भीड़तंत्र को लोकतंत्र न समझता हो और जिसकी चेतना में हर एक की निजता और स्वतंत्रता के लिए सम्मान हो। तो इस दिशा में आरंभ करते हैं "समझ" को समझने का प्रयास करके। समझ के विषय में सबसे पहले तो यह समझें कि समझ तो केवल समझदार ही सकता है। नासमझ से तो ये हो न पाएगा। और समझदार के लिए इसके सिवा कोई विकल्प ही नहीं है। उसे तो समझना ही होगा। और कोई चारा नहीं है। यहाँ समझदार व्यक्ति सामर्थ्यवान होकर भी विवश है। क्योंकि समझना तो उसी को पड़ेगा। प्रेम में भी और शत्रुता में भी समझ के बिना तो गुजा़रा ही नहीं है। प्रेम में समझ का अभाव कलह को जन्म देता है। और शत्रुता में भी नासमझी घातक ही होती है। तो समझना तो पड़ेगा और समझदार को ही पड़ेगा । नासमझ नहीं समझेगा- गांठ बाँध लीजिए वह नहीं समझेगा। हठी नहीं है, बुरा नहीं है वह, बस नासमझ है। नासमझ से अनपढ़ भी न समझ...