"भीड़" से इतर ...

मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए बहुत कड़े शब्दों में चुनाव आयोग की आलोचना की है। आलोचना भी हलका शब्द है। हत्यारा करार दिया है चुनाव आयोग के अधिकारियों को। वैसे बात सही भी है। जब Accountability फिक्स करनी ही हो (और करनी ही चाहिए) तो सबसे पहले बात चुनावी रैलियों की ही होनी चाहिए। क्योंकि "दो गज की दूरी" के नियम का सबसे अधिक बेशर्मी के साथ उल्लंघन तो यहीं हो रहा था। बल्कि अब उल्लंघन हलका शब्द मालूम पड़ता है। धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं। तो मद्रास हाईकोर्ट की बात तो एकदम ठीक है पर ये टिप्पणी अधूरी है। क्योंकि पहली लहर और दूसरी लहर के बीच के समय को अब याद कीजिए तो पाएंगे कि चुनावी रैलियों से इतर भी देश में कई जगह भीड़ थी। कुंभ में दूरी के नियम की अनदेखी हुई और किसान आंदोलन में भी। और इन सबसे पहले सुशांत को इंसाफ दिलाने के नाम पर जो मीडिया ट्रायल इस देश ने देखा वह सबसे त्रासदीपूर्ण था। कोरोना के प्रसार के बीच भी मीडिया जिस लापरवाही के साथ भीड़ पैदा कर रहा था, वह इस TRP वाली रिपोर्टिंग का सबसे घटिया चेहरा था। याद कीजिए रिया चक्रवर्ती का पीछा करती मीडिया की गाड़ियों का...