नए सत्र का शुभ आरम्भ

सादर प्रणाम। एक बहुत लंबे अंतराल के बाद इस ब्लाग पर  फिर से आप सबका स्वागत है। आशा है इस नए सत्र में हम और सार्थक चिंतन कर सकें। ऐसा चिंतन जो आज के समय में चारों ओर व्याप्त ध्रुवीकरण से पूर्णतः मुक्त हो और किसी मत या विचार को अछूत न समझता हो; जो भीड़तंत्र को लोकतंत्र न समझता हो और जिसकी चेतना में हर एक की निजता और स्वतंत्रता के लिए सम्मान हो।

तो इस दिशा में आरंभ करते हैं "समझ" को समझने का प्रयास करके। समझ के विषय में सबसे पहले तो यह समझें कि समझ तो केवल समझदार ही सकता है। नासमझ से तो ये हो न पाएगा। और समझदार के लिए इसके सिवा कोई विकल्प ही नहीं है। उसे तो समझना ही होगा। और कोई चारा नहीं है। यहाँ समझदार व्यक्ति सामर्थ्यवान होकर भी विवश है। क्योंकि समझना तो उसी को पड़ेगा। प्रेम में भी और शत्रुता में भी समझ के बिना तो गुजा़रा ही नहीं है। प्रेम में समझ का अभाव कलह को जन्म देता है। और शत्रुता में भी नासमझी घातक ही होती है। तो समझना तो पड़ेगा और समझदार को ही पड़ेगा । नासमझ नहीं समझेगा- गांठ बाँध लीजिए वह नहीं समझेगा। हठी नहीं है, बुरा नहीं है वह, बस नासमझ है। नासमझ से अनपढ़ भी न समझिए, अनपढ़ -कुपढ़ अलग बातें हैं सब। नासमझ बिलकुल अलग है। नासमझ की कोई परिभाषा भी गढ़ना मेरे सामर्थ्य के बाहर की बात है। और गढ़नी ही पड़े तो नासमझ वो है जो समझता नहीं। यहाँ ध्यान रहे कि समझता नहीं वह नासमझ है,जरूरी है कि उसके पास समझ ही न हो,बुद्धि का विकास अभी हुआ नहीं। और स्मरण रहे यह विकास उम्र के साथ स्वतः नहीं होता, बल्कि अनुभव से होता है। प्रकृति भेदभाव नहीं करती। जानती है कि गरीब बादाम नहीं खरीद सकता। बादाम खाने से नहीं ठोकर खा कर ही अक्ल आती है। तो नासमझ की बुद्धि विकसित नहीं हुई। हुई होती तो वह ज़रूर समझ सकता। यहाँ भेद समझ लेना बहुत आवश्यक है।क्योंकि इसी भेद से उपजती है एक अन्य प्रजाति- इसे कहते हैं तथाकथित "चालाक"। यह समझदार भी नहीं है और नासमझ भी नहीं। जैसा कि लिखा ऊपर कि समझदार और नासमझ दोनों की अपनी समस्याएँ हैं, इसलिए उन से पार पाने को इसी समाज में से (और हर समाज में से) कुछ लोग उठ खड़े होते हैं और चालाकी करते हैं। नियम और शर्ते बदल लेते हैं। कैपिटलिज़्म को Crony कैपिटलिज़्म में बदल देते हैं। वर्ग संघर्ष खड़ा कर सकते हैं और वर्ग संघर्ष को काटने को धर्म संघर्ष भी खड़ा कर सकते हैं। यह वर्ग समझ सकता है और आमतौर पर समझता भी है- पर इसका काम समझदार से अलग  है- यह सब कुछ समझते हुए  नासमझी को प्रोत्साहन देता है और नासमझों को पोषण और संरक्षण ही नहीं देता, अपितु आक्रमण के लिए शस्त्र भी देता है। अब आप समझिए कि यह कितना बड़ा अपराध  है। नासमझ के हाथ में शस्त्र और शास्त्र दोनों ही खतरनाक हैं।ऐसे खतरनाक काम होते हैं समाज में जब सही सोच-समझ से विहीन ये दो गुट हावी होते हैं समझदार लोगों पर। और ये हुआ है।समझदारी प्रबल होती तो प्रथम विश्व युद्ध में तीन करोड़  से अधिक  लोगों के मर जाने के बाद जो समझ दिखाई जा रही थी वह दूसरा विश्व युद्ध न होने देती और इसमें तो और अधिक हानि हुई।पर समझ है कहाँ? तम्बाकू के पैकेट पर बड़े अक्षरों में लिखा है इससे कैंसर होता है फिर भी खा रहे हैं। चेतना का ऐसा अभाव आपको और किसी जीव में शायद ही देखने को मिले। खैर, कानून बनाने वाले, उसे समझने वाले ,उसकी धज्जियाँ उड़ाने वाले, हर जगह इस तीसरे वर्ग का बोलबाला तो होता ही है। पर अभी इतना जोर दिमाग पर न दें बस मान लें कि यह एक मजबूत वर्ग है।

इस पोस्ट में बहुत कम लिखा है और बहुत अधिक समझा जाना चाहिए।  संभव है कि कहीं-कहीं यह पहेली जैसा लगे या शायद शब्दों की भूल-भुलैया मालूम पड़े पर इस नए सत्र के आरंभ में यह चिंतन आवश्यक है। इसी की आधारशिला पर आगे प्रयास करेंगे तमाम सम-सामयिक और प्रासंगिक विषयों के साथ समझ-बूझ के साथ जुड़ने की। और इस पूरे प्रयास में मैं कोई अथौरिटी नहीं हूँ। "मैं" तो कुछ है ही नहीं- बस अहंकार का परिचायक है। और सही होना तो उद्देश्य ही नहीं है।यह महत्वपूर्ण भी नहीं है। उद्देश्य बस इतना ही है कि मेरा चिंतन प्रेम और विवेक के आधार पर हो।इसी कसौटी पर सब तोला जाए।यही कसौटी है।और कुछ नहीं।

जहाँ से शुरू किया था वहीं आते हैं। तमाम सिद्धान्तों और विचारधाराओं की गुलामी से मुक्त होना समझदार के लिए ही संभव है।अन्य दो प्रजातियों के लिए यह संभव नहीं। यहाँ यह न समझा जाए कि मैं भी अलग -अलग समूहों  में बांट कर वही अपराध कर रहा हूँ जिसकी निंदा करता हूँ। वास्तव में तो हम सभी को समझदार ही बनना है। उद्देश्य यही होना चाहिए।नासमझी और चालाकी क्रमशः मूर्खता और धूर्तता हैं। तो चुनाव करना हो तो समझदारी ही विकल्प है। अभी के लिए इतना तो स्पष्ट हो ही जाए।

आशा है आपको मेरे विचार कुछ बेहतर सोचने को प्रेरित करते रहेंगे। बाकी सहमति - असहमति की व्यर्थ की बातों से तो अपना सरोकार है नहीं। उद्देश्य ही है इस ध्रुवीकरण से उपर उठ कर चिंतन करने का।

आप सबको प्रणाम। अपने और परिवारजनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें व लापरवाही न बरतें। इस पोस्ट को पढ़ने वाले सभी पाठकों को परमात्मा खुश रखें, यह प्रार्थना है।

Comments

Post a Comment