Posts

Let love remain special

Image
Since facebook came up with an option to give reactions and break the monotony of likes, I amended the way I used to like the pictures/posts. Earlier I used to like only those pictures/posts that seemed really special to me,now with the option to "love" them, I have been pretty generous to throw likes, as I've got the love one for the  loved ones. So basically the preciousness of a like has come to its all time low(atleast for me). This outdating of old things with the arrival of new ones is a more than acceptable norm in technology and related areas. And so we accepted this change and also mended our ways accordingly. With the option to love, like became a commonplace, it is left no more the same as it once used to be. I wonder what will be the next evolution? What if love too becomes commonplace? That will certainly not be a good sign, for love that is so special,must not be made so ordinary. Already we are living in times when the expression of love, if it is an art,...

क्रिकेट में राष्ट्रवाद ??????

रहने दीजिए,ये असफल प्रयास मत कीजिए।क्रिकेट के दिए हुए आँसू हॉकी के आंचल से नहीं छुपने वाले।क्योंकि हॉकी का आंचल उतना बङा नहीं।हॉकी को हमने कभी प्रोजेक्टर लगा कर प्रोजेक्ट नहीं किया,हॉकी की जीत पर कभी सङकों पर जश्न नहीं मना,हॉकी की जीत के लिए कभी हवन नहीं हुए।जब हॉकी के लिए प्री-मैच विश्लेषण नहीं हुए,तो अब पोस्ट मैच चर्चा क्यों? इसलिए खुद को झूठी सांत्वना न दी जाए और शोकाकुल हैं तो शोक ही प्रकट कीजिए अन्यथा दिल पर हाथ रखकर भारतीय हॉकी टीम के सभी खिलाङियों के नाम लेने की कोशिश कीजिए और अपनी इस झूठी सांत्वनाओं को प्रमाण पत्र दे दीजिए। पर भारत की यही विशेषता है और यही हमारी प्रसन्नता का रहस्य है कि हम बङे बङे दु:खों को छोटी-छोटी खुशियों से भुलाने का प्रयास करते हैं।और होना भी ऐसा ही चाहिए। पर यहाँ पर मुझे जो समझ में नहीं आता वह यह कि एक मैच हार जाने पर इतना दुख क्यों?मेरे कुछ मित्र तो कल रात से इस कदर सदमे में हैं जैसे परिवार में कोई बहुत खास भगवान को प्यारा हो गया हो।हर मैच की तरह कल भी वही हुआ कि एक बेहतर प्रदर्शन करने वाली टीम जीत गई तो फिर  यह संताप क्यों? क्योंकि हम उम्मीदें ब...

Being Textrovert.......

Language is dynamic and flexible. On an average 2000 new words are added every year to the Oxford English dictionary. After much success of the words "introvert"and "extrovert", there is a somewhat similar new word in the domains of lexicography-"TEXTROVERT". Though the word has not yet been added in the Oxford or Webster Dictionary, it has caught the attention of many like me. I feel myself very close to this word. This word can act as an adjective for me,provided, if only, I am allowed to define it in the best of my proximity. Generally,the word "Textrovert" can be used to describe someone who's far more comfortable texting/writing than being in person,or talking over a phone, and I am exactly the same. Now,let me throw some more light on this type of characters to justify them lest you feel they are abnormal or absurd.Firstly, textrovert is poles apart from being introvert. It is common sense if these two meant same, what was the need o...

हम फिल्में क्यों देखते हैं ?

मैंने बाहुबली वन नहीं देखी थी और अगर कुछ चमत्कारिक नहीं घटा,तो स्वाभाविक है कि बाहुबली 2 भी नहीं देखूंगा। बात फिल्म समीक्षा की नहीं, स्वभाव की है। फिल्म देखना मुझे बहुत रास नहीं आता। ऐसा भी नहीं है कि कोई ऐलर्जी हो फिल्मों से-कभी टीवी देखते हुए रिमोट और आँखें सहज ही किसी खास फिल्म पर आ कर रुक जाएं तो देख भी लेता हूँ। पर खुद से  पहल नहीं करता। बस! इतना ही संबंध है मेरा फिल्मों से।और फिल्म न देखने के लिए कोई तर्क गढने में भी मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रहती, जैसे दिवाली पर पटाखे न फोङने पर ईकोफ्रेंडली का राग या चीनी सामान न खरीदने के पीछे का राष्ट्रवाद या शाहरुख या आमिर ने कोई तथाकथित विवादित बयान दे दिया, तो इस स्टार की फिल्म बॉयकॉट कर दी जाए,ये सब अस्थायी जज़्बात हो सकते हैं, दीर्घकालिक और तार्किक नहीं। ये प्रश्न भी मुझे विचलित नहीं करता कि जिस देश को स्नैपचैट का सीईओ गरीब कहता है, वही देश अमूमन हर माह एक न एक फिल्म को सौ या दो सौ या तीन सौ करोङ क्लब में शामिल कैसे कर रहा है। यह प्रश्न भी विचलित नहीं करता कि जब किसी फिल्म के पीछे ऐसी दीवानगी हो तो यह मुझे आकर्षित क्यों नहीं कर रही? वह क...

लघुकथा : "रिश्ते"

Image
'चालीस साल हो गए और तुमने इस खत को अब तक संभाले रखा है  मनोहर?' 'हाँ कैसे ना रखूँ? अपनी पैंतीस साल की पोस्टमास्टर की नौकरी में हर एक खुशी और गम का पैगाम गंतव्य तक पहुँचाया है।यही तो एक अवसर था जब मैंने अपने काम को पूरा नहीं किया।और यही अधूरा काम मुझे मेरी पूर्णता का ऐहसास कराता हे।जरा सोचो उस दिन तुम्हारे पिता का लिखा ये खत तुम तक पहुँचा दिया होता तो जा चुकी होती तुम//किसी और से शादी//फिर कहाँ होता मेरा तुम्हारा ये साथ।और साथ भी कितना सुंदर,कितना हसीन।मिताली के बिना मनोहर अधूरा और मनोहर के बिना मिताली.....दोनों एक दूजे के पूरक।आजकल के ज़माने में ऐसे रिश्ते कहाँ संभव हैं मिताली?' 'व्हॉट्सैप वाले ज़माने में खत छुपा कर खबर छिपा लेना भी कहाँ संभव है मनोहर?' और दोनों खिलखिला कर हँस दिए..........

ताजमहल !!!!!!

Image
आज के समाज में  प्रेम करने में बङी बंदिश है।बंदिश तो हमेशा ही थी,पर आज स्टेट स्पांसर्ड बदनामी है।सरकारें रोमियो को बदनाम कर रही हैं,तो बुद्धिजीवी कृष्ण को।तो भला प्रेम कौन करे? यदि रोमियो को पता होता कि सालों बाद उसके नाम से शोहदों का ज़िक्र आएगा तो कभी मुहब्ब्त करने की गुस्ताखी न करता।यदि  शाहजहाँ को पता होता कि उसके मरने के तीन सौ साल बाद ताजमहल को शिव मंदिर या किसी राजा का महल आदि बताया जाएगा तो प्यार की निशानी के रूप में इतनी बङी इमारत बनाने के फेर में न पङता।वैसे ताजमहल बनाने में आज के आशिक की कोई दिलचस्पी नहीं(और हैसियत भी नहीं)और ऐसा भी नहीं कि जहाँ ताज नहीं बने,वहाँ प्यार नहीं था।ताजमहल मुगल कालीन कलाकारी का एक अद्भुत् नमूना है,पर प्यार की एकमात्र निशानी नहीं। आज का प्रेमी ताजमहल क्यों नहीं बना रहा?इसके कई कारण हो सकते हैं।एक तो यह कि अब बादशाह रहे नहीं और उनकी बची-कुची बादशाहत भी इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स बंद कर के खत्म कर दी।धीरे-धीरे समाजवाद मजबूत होता चला गया और बादशाह होना एक महंगा सौदा हो गया ।इससे अच्छा है गरीब होना और सब्सिडी का हकदार बनना।पर क्यों न सरकार ...

"शाजि़या" (लघुकथा)

'अभी तक वही रिंगटोन,इनफैक्ट इफ़ आई ऐम नॉट रॉंग फोन भी वो ही है ना? यू आर इम्पौसिबल किशन।सात साल में बिलकुल नहीं बदले' शाज़िया ही बोले जा रही है,किशन बस हाँ या ना में सर हिला देता है । सात साल पहले भी शाज़िया ही ज़्यादा बोलती थी, ब्राह्मण का ये छोरा तो अक्सर खामोश ही रहता था। बातों का सिलसिला आगे बढने लगता है। सात साल बाद जो मिल रहे हैं दोनों। 'तो मैडम कैसे हैं आपके शौहर?' 'अच्छे हैं,ही इज़ वैरी केयरिंग।' एंड किड्स? 'आई हैव ए सन ।शाहिद नाम है।पाँच साल का हो गया है।' 'तुम बताओ तुम्हारी लाईफ कैसी चल रही है? How is your wife?' 'पता है शालिनी को भी म्यूज़िक का शौक है,और कविताएं भी लिखती है और लप्रेक भी।' 'मतलब तुम्हारी ही तरह हैं? 'ऐक्चुअली तुम्हारी तरह भी है,मुझे बोलने का मौका ही नहीं देती।' 'और तुम्हारी डॉटर? 'Yeah she is also very cute. Infact she is also like you, दो साल की है।' 'क्या नाम है?' थोङी देर खामोश रहा किशन। यह खामोशी मानों सात सालों के मौन की कहानी कह रही थ...